Wednesday, November 9, 2011

शिव चालिसा

 
 
जय गणेश गिरिजासुवन,मंगल मूल सुजान, कहत अयोध्यादास तुम,देउ अभय वरदान|

जय गिरिजापति दीनदयाला, सदा  करत  सन्‍तन  प्रतिपाला|

भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्‍डल नागफनी के|

अंग गौर सिर गंग बहाये, मुण्‍डमाल तन क्षार लगाये|

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देख नाग मुनि मोहे|

मैना मातु कि हवै दुलारी, वाम अंग सोहत छवि न्‍यारी|

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रून  क्षयकारी|

नंदि गणेश सोहैं तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे|

कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काऊ|

देवन जबहिं जाय पुकारा, तबहिं दुःख प्रभु आप निवारा|

कियो उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिली तुमहिं जुहारी|

तुरत  षडानन  आप  पठायउ, लव  निमेष महँ मारि  गिरयउ|

अप  जलंधर असुर  संहारा, सुयश  तुम्हार  विदित संसारा|

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, तबहिं कृपा करि लीन बचाई|

किया तपहिं भागीरथ भारी, पूरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी|

दानिन महँ तुम सम कोई नाहीं, सेवक स्तुति  करत  सदाहीं|

वेद माहि महिमा तब गाई, अकथ अनादि भेद नहीं पाई|

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला, जरत सुरासुर भए विहाला|

कीन्‍ह दया तहँ करी  सहाई, नीलकंठ तव नाम कहाई|

पूजन  रामचन्‍द्र जब  कीन्हा, जीत के लंक विभीषण दीन्हा|

सहस  कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी| 

एक कमल प्रभु राखेउ गोई, कमल नयन पूजन चहँ सोई|

कठिन  भक्ति  देखी प्रभु शंकर, भये प्रसन्न दिये इच्छित वर|

जय जय जय अनन्‍त  अविनाशी, करत  कृपा  सबके  घट वासी|

दुष्ट  सकल नित मोहि सतावैं, भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवै|

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, येहि अवसर मोहि आन उबारो|

ले त्रिशूल शत्रून को मरो, संकट ते मोहि आन उबारो|

माता  पिता  भ्राता सब होई, संकट में पूछत नहीं कोई|

स्वामी  एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी|

धन निर्धन को देत सदाहीं, जो कोई जाँचे सो फल पाहीं|

अस्तुति  केहि विधि करौं तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी|

शंकर  हो  संकट  के  नाशन, विघ्न  विनाशन  मंगल  कारन|

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं, नारद सारद शीश नवावैं|

नमो  नमो  जय नमः शिवाय, सुर  ब्रह्मादिक पार न पाय|

जो यह पाठ करे मन लाई, ता पर होत हैं  शम्भु सहाई|

ऋनियाँ जो कोई हो अधिकारी, पाठ करै सो पावन हारी|

पुत्र  होन कर इच्छा कोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई|

पंण्‍डित त्रयोदशी  को  लावै, ध्यान पूर्वक होम करावे|

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा, तन  नहिं ताके रहै कलेशा|

धूप दीप नैवेध चढावै, शंकर  सम्‍मुख पाठ सुनावै|

जन्‍म  जन्‍म  के पाप नसावै, अन्त धाम शिवपुर में पावै|

 कहत अयोध्‍यादास आस तुम्हारी, जानि सकल दुःख हरहु  हमारी|

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